अमृत महोत्सव ---- भारत की आजादी के संघर्षों के वन देवता कथा काव्य----- वन देवता बिरस
अमृत महोत्सव ----
भारत की आजादी के संघर्षों के वन
देवता कथा काव्य-----
वन देवता बिरसा मुंडा
कौन कहता है क्रांति को चाहिये कारण और बहना ।।.
क्रांति तो धर्म ,कर्म ,कर्तब्य ,दायित्व बोध उत्साह उमंग का है तराना।।
जज्बे का जूनून ,जज्बातों
रिश्तो रीत,प्रीती परम्परा की अक्क्षुणता पर जीना मरना मिट जाना।।
जूनून ,आग,चिंगारी ,मशाल दुनियां में मिशाल का मशाल ।।
हस्ती हद जमी आसमान से आगे जहाँ के नए सूरज चाँद की हैसियत, गर्मी, ताकत से तक़दीर की इबारत।।
आगाज़ ,अंदाज़ के जांबाज़ से वक्त करवट बदलता।।
वक्त के निरन्तर प्रवाह में उठते गिरते अपने कदमों की ताकत के लिये इंतज़ार करता ।।
खुद से गुहार करता खुद में खुदा का इज़ाद करता जहाँ में खुद का खुदाई इज़हार करता।।।
दुनियां में इंसान को ईनसनियत से मोहब्बत तकरार की टंकार की गूँज की गवाही देता।।
अडिग चट्टानों का तपना सूरज की गर्मी जंगल बृक्षों ने झेला।।।
मौसम की अंगड़ाई का निश्चिन्त भाव फिर भी टीके हुये दृढ़ता से अपने मकसद मंज़िल के स्वाभिमान का इंतज़ार में ।।
आएगा मतवाला चट्टानों की गर्मी की ज्वाला जंगल के जज्बात लिये।
रणबांकुरा निश्चल ,निश्छल हस्ती की मस्ती का रचने वाला अध्याय नया।।
युग में अपनी हस्ती की हद निश्चय करने वाला समय सत्य की इक्षा परीक्षा का परिणाम इबारत लिखने वाला।।
गुलामी की पीड़ा को हरने वाला सन् अठ्ठारह सौ सत्तावन की आज़ादी के संघर्षो को बेरहमी से कुचल चुका था अपने अत्याचारों से हाहाकार मचानेवाला।।
चाहु और निराशा के बादल में आशा चिराग प्रज्वलित हो बतलाती भारत का वर्तमान भविष्य को है ख़ास कुछ गड़ने वाला।।
बिहार की पावन भुमि के कण कण में थी ज्वाला आदि वासी भी भारत का इतिहास का रचने वाला ।।
गौड़,संथाल मुंडा स्वाभिमान पर मर मिटने का भारतीय भारत वाला।।
संघर्षो ही जीवन ,संघर्ष संस्कृति संस्कार को जीने वाला ।।
आपनी धुन मकसद का मतवाला त्याग ,तपश्या ,बलिदानो का काल कर्म रचने वाला।।
तक़दीर की इबारत खुद लिखने वाला अपने मकसद की राहों को खुद चुनने वाला जहाँ की शान में तारीख लिखने वाला।।
विरला व्यक्ति पुरुष महापुरुष इंसान इंसानियत का ईमान वक्त को मोड़ने वाला ।।
वक्त के आईने में नए काल कलेवर का पराक्रम ,पुरुषार्थ बिरसा मुंडा मानवता युग का मानव जैसा भगवान।।
विधाता ने कुछ दिया या नहीं, भाग्य भगवान ने कुछ दिया या नही ।।
पेपरवाह ना भगवान से शिकवा गिला ना भाग्य को तोहमत ।।।
जिंदगी की हर सांस धड़कन में मकसद की मंज़िल का लम्हा लम्हा।।
माँ सुगना मुंडा पर भगवान् मेहरबान उसकी कोख ने दिया जन्म पंद्रह जनवरी सन् अठ्ठारह सौ पचहत्तर को फौलाद इरादों की औलाद।।
इतिहास शौर्य स्वाभिमान की माटी क्रांति संस्कृत जीवन जननी जन्म भूमि को समर्पित जन जन का संस्कार।।।
अहिंशा परमोधर्मः के अवतरण आगाज़ की माटी घर घर बौद्ध बिहार भारत की गौरव गाथा का प्रदेश अध्याय ।।
छोटा नागपुर पठार जिसके जर्रे जर्रे में बसती भारत की खुशबू की ख़ास।।
सौभाग्य की करमी हातु रचते बसते उति हातु इतिहास पुरुष बिरसा मुंडा जिनकी स्वाभिमान संतान।।
आदि वासी जंगल पर्वत का वासी सृष्टी प्रेम संताप के प्राणी ।।
जीने का अंदाज़ निराला भय ,भयंकर काल से नित्य निरन्तर पाला ।।
दृढ़ता ,साहस ,संघर्ष ही सुबह शाम दिन रात जीवन बिना युद्ध भूमि के मातृ भूमि पर जीवन जीने का संग्राम।।
कठिन चुनौती का जीवन आदि मानव आदि वासी जन जीवन नित्य निरंतर अविरल अविराम ।।।
मानवता की आदि संस्कृत का शौर्य सूर्य उति हातु वन वासी शक्ति ज्वाला का चिराग मशाल ।।।
बचपन में पहला गुरुकुल शिक्षा का मंदिर विद्यालय सल्बा गॉव।।
नित नित बढ़ता बचपन वक्त की अपनी रफ्तार ऊदी हातु का चाई बासा ठौर नया छूटा सल्बा गॉव।।
गुलाम मुल्क की ना अपनी भाषा ना कोई ध्वज पहचान शासक की भाषा अंग्रेजी ही शिक्षा और लम्हे लम्हे की शान।।
सन् अठ्ठारह सौ चौरासी प्रकृति के तांडव से मचा हाहाकार महामारी अकाल से जन जन था बेहाल।।
उतिहातु का नन्हा कोमल मन देख द्रवित था समाज की दुर्दसा देश मौन परेशान।।
नौ वर्ष का किशोर मन में व्यथा हलचल बहुत शोर अंगार ।।
सुलगते मन में जज्बे की ज्वाला काल कराला वक्त विवसता दासता को तोड़ने को वेचैन बेहाल।।
दहसत का शासन क्रूरता से दमन कर रहा था ।।
आजादी के उठते कदम हाथो सर को कभी सर कलम कर देता कभी सलाखों के पीछे दबा देता आवाज़।।
ऑक्टूबर अठ्ठारह सौ चौरासी मुंडा आदि वासी नौजवानो पर क्रूरता
कहर का मुकदमा अठ्ठारह सौ पच्चासी में हजारी बाग़ ।।।
अदालत ने बेवजह सजा सुनाई दो साल।।
उतिहातु का मन बचपन से ही प्रतिशोध में धधकती ज्वाला आँखों में अंगार ।।
फौलाद इरादों का चट्टान माँ भारती का अभिमान धरती बाबा नाम दुनिया के विश्वास का नया पहचान।।
धरती बाबा ने सन् अठ्ठारह सौ सत्तानवे से शुरू किया भारत के अपमान के प्रतिशोध का नया अनुष्ठान।।
आवाहन कर देश के अस्मत की खातिर एकत्र किया मुंडा नौजवान।।
मात्र चार सौ विरसा नौजवान अगस्त अठ्ठारह सौ सत्तानवे खूंटी थाने पर धावा बोल आजादी के युद्ध का किया शंखनाद।।
तांगा नदी का तट आज भी है गवाह विरसा के नेतृत्व वीरता शौर्य दृढ़ता का
इतिहास।।
अठ्ठारह सौ अठ्ठानबे का भारत के इतिहास का आदि वासी वीर सपूतों के नाम।।
अंग्रेजो के घमण्ड को चकनाचूर किया, किया शर्मशार परास्त ।।
शर्मशार हार से अंग्रेज गए बौखलाय बच्चों और औरतो का किया कत्लेआम ।।
बन वासी आदि वासी आज़ादी के दीवानो परवानो को किया ग्रिफ्तार।।
उन्नीस सौ अँठ्ठनवे में डोम्बारी पहाड़ियों पर विरसा ने मुंडाओं आदि वासी की महासभा में गर्जना से जागा मुंडा वीर ।।
ख़ौलते खून की गर्मी का एक एक शुरबीर।।
चौबीस दिसम्बर अठ्ठारह सौ निन्यानबे की क्रांति वीर विरसा लिये हाथ में क्रांति मशाल ।।
हथियारों में आदि वासी परम्परा के हथियार तीर कमान तलवार कटार ।।
सेनापति विरसा युवा ओज़ तेज क्रांति का कान्ति पुत्र आदि संस्कृत का जोश उमंग उत्साह।।
कूद पड़ा युद्ध में कुछ वनवासी आदिवासी युवा साथीयो के संग जितने या मरने का संकल्प लिये साथ।।
युद्ध बहुत कठिन था केवल हौसला हिम्मत का था साथ ।।
सामने दुश्मन था विकराल फिर भी हार न मानी ।।।
झुक जाना मुण्डाओ की संस्कार नही लड़ते लड़ते शहीद हुए गिनती जिनकी आसान नहीं ।।
कुछ को क्रूर दमन के शासन ने बंदी बना न्याय के फरेब ने चालीस को आजीवन कारावास।।
छः को सजा वर्ष चौदह की कुछ को तीन पांच साल का कारावास ।।
विरसा ने हार न मानी फिर से मुंडा संघर्ष जिन्दा करने की ठानी जंगल जंगल फिरता लिये क्रांति के मशाल।।
लड़ाई और विजय का मानव मसीहा विरसा मुंडा को तीन मार्च सन् उन्नीस सौ को अंग्रेज़ों ने ग्रिफ्तार किया ।।
विरसा पर कैद में क्रूरता दमन का दौर चला ।।।
धीरे धीरे विरसा मुंडा जीवन के अंतिम पग का सफर कैद काआत्म साथ।।
न टुटा न झुका न आत्म ग्लानि का भाव ।।
वीरों की परम्परा के स्वाभिमान से नौ जून उन्नीस सौ को महापरिनिर्वाण किया।।
भारत के इतिहास में उतिहातु ,धरती बाबा ,विरसा मुंडा लंबे जीवन का नाम नहीं ।।
मात्र चौबीस वर्ष के जीवन में जीवन मूल्यों के वर्तमान को नया इतिहास दिया।।
आदि मानव आदि संस्कृत का शुर वीर बीरसा मुंडा माँ भारती के आँचल का धन्य धारिहर हैं ।।
दुनिया में कर्तव्य दायित्व बोध का समय काल भाग्य भगवान की व्यख्या का स्वागत सर्वोत्तम है।।
बता गया दुनिया में कोई जकड़ नही सकता जंजीरो में लाख चुनौती भी नहीं रोकती राहों को संकल्पों में हो गर विश्वास ।।
मकसद और इरादों पर दृढ़ता से चलना हासिल करना मंज़िल ।।।
थक हार नही जाना मर मिटने का जज्बा जीत का जूनून ।।
संसाधन जयदा हो या कम पराक्रम पुरुषार्थ के लिये मतलब नहीं ।।
उतिहातु अर्थ बताता धरती बाबा दोनों का युग पथ की प्रेरणा प्रकाश बिरसा मुंडा।।
बिरसा के जन्म जीवन का मूल्य यही युवा ओज़ का आकर्षण धैर्य ,धीर, वीर का आभूषण ।।
क्रांति ,कर्म ,धर्म ,अर्थ ,सत्य युवा वेग नायक युवा कमान के तीर की धार युवा चेतना का संवाहक ।।
जन जाती जंगल पहाड़ो की संस्कृत सीमित संसाधन ।। ।
जीवन संघर्षों का नाम घड़ी पल प्रहर दिन रात।।
निरंतरत प्रकृति परीक्षा का जीवन नाम ।।।
ना शिकवा ना शिकायत वनवासी लड़ता रहता जीवन संग्राम।।
विरसा मुंडा आदि संस्कृति का प्रभा प्रभाह युगों युगों तक भारत की पीढ़ी दर पीढ़ी अक्षुण होता समबृद्ध प्रेरक पुराण पुरुषार्थ।।
नांदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश
Gunjan Kamal
26-Nov-2022 09:45 AM
शानदार प्रस्तुति 👌
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Ayshu
18-Nov-2022 06:10 AM
Nice
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आँचल सोनी 'हिया'
18-Nov-2022 12:04 AM
शानदार रचना 🌺👌
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